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समत्र॒ गावो॒ऽभितो॑ऽनवन्ते॒हेह॑ व॒त्सैर्वियु॑ता॒ यदास॑न्। सं ता इन्द्रो॑ असृजदस्य शा॒कैर्यदीं॒ सोमा॑सः॒ सुषु॑ता॒ अम॑न्दन् ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sam atra gāvo bhito navanteheha vatsair viyutā yad āsan | saṁ tā indro asṛjad asya śākair yad īṁ somāsaḥ suṣutā amandan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्। अत्र॑। गावः॑। अ॒भितः॑। अ॒न॒व॒न्त॒। इ॒हऽइ॑ह। व॒त्सैः। विऽयु॑ताः। यत्। आस॑न्। सम्। ताः। इन्द्रः॑। अ॒सृ॒ज॒त्। अ॒स्य॒। शा॒कैः। यत्। ई॒म्। सोमा॑सः। सु॒ऽसु॑ताः। अम॑न्दन् ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:30» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:27» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के उपदेश विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (इहेह) इस जगत् में (गावः) किरणें (वत्सैः) बछड़ों से (वियुताः) वियुक्त (अभितः) चारों ओर से (आसन्) होती हैं (ताः) उनकी आप लोग (अनवन्त) स्तुति प्रशंसा करें और जिसको (अस्य) इस मेघ के (शाकैः) सामर्थ्यों से (अत्र) इस संसार में (इन्द्रः) सूर्य्य (सम्) अच्छे प्रकार (असृजत्) उत्पन्न करता है वा (ईम्) सब ओर से (सुषुताः) उत्तम प्रकार उत्पन्न (सोमासः) पदार्थ वा ऐश्वर्य्यवाले जीव (यत्) जो (अमन्दन्) आनन्दित होते हैं, उनको सूर्य्य (सम्) एक साथ उत्पन्न करता है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जैसे बछड़ों से वियुक्त गौएँ नहीं शोभित होती हैं, वैसे ही सन्तानों के सदृश वर्त्तमान सघन अवयवों से रहित मेघ नहीं शोभित होता है ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वदुपदेशविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यदेहेह गावो वत्सैर्वियुता अभित आसँस्ता भवन्तोऽनवन्त। या अस्य शाकैरत्रेन्द्रो गाः समसृजदीं सुषुताः सोमासो यदमन्दँस्तानिन्द्रः समसृजत् ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सम्) (अत्र) (गावः) किरणाः (अभितः) (अनवन्त) स्तुवन्तु (इहेह) अस्मिञ्जगति (वत्सैः) [(वियुताः)] वियुक्ताः (यत्) याः (आसन्) भवन्ति (सम्) (ताः) (इन्द्रः) सूर्य्यः (असृजत्) सृजति (अस्य) मेघस्य (शाकैः) शक्तिभिः (यत्) ये (ईम्) सर्वतः (सोमासः) पदार्था ऐश्वर्यवन्तो जीवाः (सुषुताः) सुष्ठु निष्पन्नाः (अमन्दन्) आनन्दन्ति ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यथा विवत्सा गावो न शोभन्ते तथैवापत्यवद्वर्त्तमानैर्घनैर्वियुक्तो मेघो न शोभते ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जशा वासरापासून दूर असलेल्या गाई शोभून दिसत नाहीत तसेच संतानरहिताप्रमाणे कोरडे मेघ शोभून दिसत नाहीत. ॥ १० ॥